सपने में गांधी

कुछ समय पहले दिल्ली कैंट में सेना की परेड देखने जाने का मौका मिला। हथियारों से लैस जवान परेड करते हुए नजर आए। बड़ी-बड़ी मिसाइलें दिखीं। टैंक, तोप, गोला बारूद सबका प्रदर्शन हुआ। जवानों ने हवाई रास्तों से रोमांचक ड्रिल की नुमाइश की। गोले दागे। बंकर उड़ाए। जमीन पर और हवाई फायरिंग भी की। आसपास की धरती विस्फोटों से कांपने लगीगगनभेदी गर्जन से कान भयाक्रांत हो उठे। आकाश में उड़ रहे छिटपुट पक्षी डर के मारे अपना रास्ता भूल गए। जवानों ने चलती मोटरसाइकिल पर एक से बढ़ कर एक संतुलन वाले कारनामे दिखाए। एक ही बाइक पर दर्जनों जवान सवार होकर तेजी से भागते नजर आए। तानिया शेरगिल की खड़कती बूटों से पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया। मांओं, विधवाओं ने अपने शहीद बेटे, पति की वीरता के लिए पदक लिए। और भी बहुत कुछ रोमांच से भर देने वाला और रोंगटे खड़ा होने वाला वहां घटित हुआ। यह सब देख कर और देश की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त होने के अनुभव समेटे घर लौट कर आई तो पति ने पूछा- 'कैसा रहा अनुभव।' इस पूछे गए स्वर में देश प्रेम का कंपन था और हृदय में देशभक्ति का हिलोर। उनकी इच्छा के विरुद्ध कुछ बोलने का साहस न हुआइसलिए कह दिया- 'बहुत शानदार।' उस रात देर तक अजीब-अजीब खयाल आते रहे। जाने कब आंख लगी तो सामने एक वृद्ध आदमी को खड़ा पाया। हाथ में लाठी और चेहरे पर अहिंसक मुस्कान लिए। जैसे देशभक्ति के प्रचंड आवेग में कोई प्रेम का संदेश लिए खड़ा हो। मन में सवाल उठा कि क्या यह वही आदमी है, जिसकी कछ महीने पहले हमने डेढ़ सौवीं जयंती मनाई है और आज पुण्यतिथि मना रहे हैं। डेढ़ सौवीं जयंती को लेकर कितनी उत्सुकता देखने को मिली, कितना उत्साह देखा गया, तमाम आयोजन किए गए, प्रतिमाओं पर फूल मालाएं अर्पित की गईं। अखबारों ने जाने कितने विशेषांक इस वृद्ध आदमी यानी महात्मा गांधी के लिए समर्पित कर दिए। उनके विचारों के आगे दुनिया नतमस्तक हुई। बुद्धिजीवियों ने अहिंसा की तरफदारी में लेख लिखे, गीत गाए, कविताएं रची। लेकिन जिस शक्ति और शौर्य का प्रदर्शन हमारे जवानों ने किया, भारत या फिर दुनिया में ऐसी तस्वीर की कल्पना तो गांधी ने नहीं की थी! जिस गांधी को हम स्वतंत्रता का सर्जक मानते हैं, वे तो बिना हथियार के युद्ध लड़ और जीत सकते थे, बिना एक गोली दागे, बिना खून-खराबा किए। वहीं अपने देश सहित दुनिया भर में हथियारों की इतनी जरूरत और होड़ को देख कर मन ही मन ठेस पहुंचती है। कैसी दुनिया बनाई है हमने, जहां इंसान को इंसान से बचने के लिए अनगिनत गोला-बारूद, तोप, मिसाइलें ईजाद करने पड़ते । भूख, गरीबी और बेरोजगारी से ज्यादा हमारी चिंता हथियार बनाने और युद्ध लड़ने की हो चुकी । हर तरफ हिंसा का प्रदर्शन है। गांधीजी ने यह कतई नहीं सोचा होगा कि हमारे देश सहित दुनिया के तमाम देशों में रक्षा बजट साल-दर- साल बढ़ता जाएगा। रफ्तार इतनी तेज कि अभी पिछले कुछ सालों के दौरान ही कई देशों के रक्षा बजट बढ़ कर दुगुना हो गया है। दुनिया के स्तर पर सेना पर सबसे अधिक खर्च करने वाला चौथा देश बन गया है भारत। सिर्फ अमेरिका, चीन और सऊदी अरब का सैन्य खर्च भारत से अधिक है। गांधी ने तो कहा था- 'मिलिट्री पर भी कम से कम खर्च करना पड़े। कल से मिलिट्री पैसे लेने वाली नहीं, लोगों की अपनी बनेगी। जो मिलिट्री अपने आप बनेगी, वह अपनी रक्षा करेगी। अपने पड़ोसी की और अपने देहात की रक्षा करेगी। और इस तरह हिंदुस्तान की भी रक्षा करेगी।' आज गांधी की अहिंसा की बात सिर्फ वाहवाही लूटने के लिए की जाती है। सब गांधी और उनके विचारों का प्रयोग अपनी छवि बनाने के लिए करते हैं। गांधी की प्रशंसा कर अपनी प्रशंसा बटोरते हैं। क्या अहिंसा और हथियार एक साथ चल सकते हैं। गांधी की भाषा बोलने में राजनीतिकों का कुछ नहीं जाता, लेकिन गांधी के रास्ते पर चलने के लिए सब कुछ त्यागना पड़ सकता है। इसलिए लोग गांधी का शोर बहुत मचाते हैं, मगर रत्ती भर भी कोई गांधी नहीं बनना चाहता। खुद हमारे देश में ही गांधी के सुझाए मार्ग पर चलने वाले कितने लोग हैं? सादगी और विनम्रता को पिछड़ेपन की निशानी माना जाता है। जिसके पास जितनी बड़ी कार, उसकी उतनी इज्जत। गरीबों के साथ अमीरों का रवैया आप राह चलते सड़क पर देख सकते हैं। कोई अगर सादगी से रहना भी चाहे तो समाज में उसका मखौल बन जाएगा, तरह-तरह से शर्मिंदा किया जाएगा। दबाया जाएगा। ठीक उसी तरह जैसे कोई देश अगर सैन्य शक्ति का विकास न करे तो दूसरे देश उसे दबाने में लग जाएंगे। यह सब सोच कर गांधी की याद शिद्दत से आ गई। पता नहीं गांधी आज हथियारों की होड़ को देखते तो क्या सोचते! काश कि कोई गांधी फिर से जन्मे। सिर्फ भारत में ही नहीं, आज हर देश को गांधी की जरूरत है। हमें रास्ता दिखाने और दुनिया को जीने की राह सुझाने के लिए।